वैलेंटाइन्स डे कल आज और कल
‘वैलेंटाइन्स डे’ अगर बहार के देश से आया है , फिर भी हमारी संस्कृति ऐसी है, जो हमारे त्यौहार तो मानते है , मगर साथ में बाहर का भी जो अच्छा है उसको खुशीसे मनाके आनंद लेते है… अगर किसी मराठी लड़की की शादी साउथ इंडियन लड़के के साथ हो जाये तो वो इडली डोसा के साथ उनके मन में वरन भात की मिठास भी जागृत करती है, उसी तरह जो जो अच्छा है उसको अपनाके हमारी जिंदगी सिर्फ लम्बी नहीं बड़ी भी करते है| जिसमे बहोत सारी अच्छी अच्छी यादें शामिल हो तो बुढ़ापे में अगर हम पीछे मुड़के देखे तो हमने कितने पैसे कमाए वो न देखते हुए जीवन के कितने अनमोल लम्हे हमारी यादो की तिजोरी में बंद है वो देख सके |
तो हम बात कर रहे थे अब आने वाले ‘वैलेंटाइन्स डे’ की. ऐसे देखा जाये तो कुछ साल पहले वैलेंटाइन डे की फैशन शुरू हुई | हाँ कुछ ही सालो पहले। .. मगर ऐसे कहे तो हर दिन एक नया प्रेम दिवस अपने दीवाने तो कितने सालोसे मना रहे थे… इसमें सिर्फ एक दिन को उसकी पहचान मिल गयी | अब कितने लोग ये कहेंगे की भाई ये तो मार्केटिंग के फंडे है , थोड़े ग्रीटिंग कार्ड्स , थोड़े चोकोलेट्स और फूल ये सब फटाफट बिक जाये इसी लिए ये सब चल रहा है। .. शायद ये ठीक भी हो सकता है , मगर मुझे एक बात समझ नहीं आती की कोई दिन अगर सेलिब्रेट करके जिंदगी एक दिन कुछ मजमे कटे तो इसमें हर्ज ही क्या है ?
ये वैलेंटाइन डे मानाने के तरीके भी हर उम्र के साथ बदलते जाते है, कॉलेज में लड़का लड़की को फूल देकर विल यु बी माय वैलेन्टिन ? पूछ कर कॉलेज की कैंटीन में लड़की को समोसा खिलाके डेट करता है, तो नयी नयी शादी हुए नौजवान बीबी पे इम्प्रैशन माँरने के लिए उसे एकड़ अंगूठी या ड्रेस गिफ्ट करते है… मगर खरी बात तो ये है की अगर आपकी शादीको १०-१२ साल हुए है तो बच्चोका , घरवलोका करते करते अपनी वैलेंटाइन कभी फुस हो जाती है और काहेका वैलेंटाइन छोडो … काम करने दो,,, या फिर अरे गिफ्ट लेने की क्या जरुरत थी इतने पैसे में तो बच्चू के लिए नया खिलौना आ जाता ऐसे सुनाने मिलता है और फिर अब हम बुड्ढे हो चुके ये मानकर ये बिचारे सब छोड़ छाड़ कर योगी बनने निकलते है। .. मतलब ऑफिस का काम और घर बस। .. नो डेटिंग। . नो गिफ्टिंग…
असली मजा तो तब आता है जब शादी को २० या २५ साल हो जाते है, बच्चे अपनी जिंदगी में मशगूल हो जाते है और अब इन महाशय और देवीजी के पास वक्त की कोई कमी नहीं होती और वो फिरसे सोचने लगते है की क्यों न हमारी जो बाते जवानी में घरके काम के या जिम्मेदारी के बोज की वजह से रह गयी है वो फिर से कर ले , जिंदगी फिर जिले। … और अब ये निकल पड़ते है इस सुहाने सफर में और इस सफर के हर एक मोड़ पे ढूंढ़ने लगते है कुछ ऐसे दिन जिन्हे ये सेलिब्रेशन मोड़ में एन्जॉय करे। ..
….तो दोस्तों हमारा ‘वैलेंटाइन्स डे’ जो की कभी इनके लिए पकाउ होता था उसी को ये सेलिब्रेट करते हे नए ढंगसे … सुबह सुबह गार्डन में बीबी के साथ चलकर , वहां उसके बालोमे गजरा लगाके , फिर एक अच्छीसी होटल में लंच करके। … मगर अभी इनका लंच मतलब एक डोसा दोनों में आधा आधा क्योकि अब इतना खाने होता भी नहीं है… फिर भी इसका मजा तो कुछ और ही है… अब शाम होते ही साहब निकल पड़ते है अपनी बीबी को लेकर समुन्दर के किनारे।
.. और वंहा शामको घुमाके , पाव भाजी खाकर मजेसे गप्पे मार कर घर पहुँच ते है ये सोचते हुए की वाह ! ये बात शायद जवानी में भी की होती तो क्या होता , क्यों हम जिम्मेदारिओमें से एक दिन खुदके लिए निकल नहीं पाए ? मगर हम अब अपने बच्चोको ऐसी भूल नहीं करने देंगे।।। जैसे ही घरमे अंदर आते है बच्चे कैंडल लाइट डिनर कर लाइट म्यूजिक लगाकर अपना ‘वैलेंटाइन्स डे’ अपने तरीकेसे मना रहे होते है। उनको देख माँ बाप को बहोत अच्छा लगता है की भाई हम तो पागल थे जिंदगीकी एक छोटीसी बात समझ नहीं पाए मगर अपने बच्चे तो एकदम सॉलिड निकले !!!

